(भोपाल) विगत शुक्रवार सीधी जिले की मोहनिया टनल के समीप हुई भीषण सड़क दुर्घटना में मरने वालों का आंकड़ा बढ़कर 15 पहुँच गया है, वही घटना के लगभग 50 घायलों का उपचार कराया जा रहा है। मृतकों में शामिल 8 ग्रामीण जिले के चोभरा दिग्विजय सिंह गांव के निवासी है। जिनकी मौत के बाद गांव के घरों में शनिवार सुबह चूल्हा तक नही जला है। मातम से व्याकुल परिजनों और प्रियजनों के रूदन के शोर से सोन नदी का शांत तट गूंजता रहा, अंतिम यात्रा में बड़ी संख्या में लोग जमा हुए।
चोभरा दिग्विजय सिंह गांव की सोन नदी का नीरव तट शनिवार उस समय शोर और मातम से भर गया जब गांव के 8 ग्रामीणों के शव दाह संस्कार के लिए लाये गये, शमशान भूमि पर रोती बिलखती महिलाओं और बच्चों को संभालने के लिए परिजनों को काफी मशक्कत का सामना करना पड़ा। शोक से व्याकुल परिजनों की पीड़ा देखकर वहा उपस्थित हर ग्रामीण की
आंख भर आई।
सड़क दुर्घटना के रूप में गांव के सामने आई एक बड़ी विपदा और दुख के कारण शनिवार सुबह गांव के घरों में चूल्हे तक नही जले, न ही लोगों ने खाना खाया। चारो तरफ विलाप और चीत्कार के बीच- बीच निर्मित होने वाला सन्नाटा मन को झकझोर देने वाला था। वैसे तो इस भीषण हादसे को लेकर पूरे देश और प्रदेश में शोक की लहर है परंतु जिस गांव ने अपने 8 सदस्यों को खोया हो उसके लिए यह दुख अकथनीय है।
इसी दुर्घटना में गंभीर घायल इसी गांव की महिला विमला कौल को दिल्ली रिफर किया गया है। अकस्मात हुए इस हादसे से गांव के कई परिवार उजड़ गये तो कई के सामने जीवन की गुजर बसर का संकट है। इस हृदय विदारक घटना में गांव की किसी मां का सिंदूर मिटा तो किसी बहिन से उसके भाई का साथ हमेशा के लिए छूट गया। किसी माँ की गोद सूनी हो गई तो किसी पिता के बुढ़ापे का सहारा उसे छोड़कर चला गया।
अंतिम संस्कार में उमड़ा जन सैलाब
बस हादसे में सबसे ज्यादा मरने वाले 8 ग्रामीण चोभरा दिग्विजय सिंह गांव के निवासी थे, जिनके अंतिम संस्कार की सूचना मिलते ही मृतको के नाते रिश्तेदारों के साथ आस-पास के हजारों ग्रामीण अंतिम संस्कार में भाग लेने के लिए सुबह से ही गांव में एकत्र हो गये। गांव के समीप से निकलने वाली सोन नदी के भंवर सेन घाट पर मृतकों का सामूहिक अंतिम संस्कार किया गया, नदी के तट पर एक साथ आठ चिताये सजाई गई फिर बारी बारी से मुखाग्नि दी गई। इस मार्मिक दृश्य से सभी आहत थे।
दुर्घटनाओं से नही सीखा सबक राजनीति पर सवाल
पार्टी के जनाधार को बढ़ाने और वोट कबाड़ने की राजनैतिक मंशा से प्रदेश में हुई दर्जनों रैलियों में शामिल होने लाये गये ग्रामीण सड़क दुर्घटनाओं का शिकार हो चुके है। इसके बाद भी रैलियों के दौरान सुरक्षित यातायात व्यवस्था को लेकर कोई उपाय अब तक सामने नही आये है।
वर्तमान वाकया प्रदेश में काबिज भाजपा सरकार के द्वारा सतना आयोजित शबरी माता जयंती कोल जनजाति सम्मेलन कार्यक्रम से जुड़ा हुआ है। जिसे सफल बनाने के लिए आसपास की जिलों से बड़ी संख्या में ग्रामीणों को बसों में भरकर लाया गया था, जिसमें केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह एवं प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने स्वयं शिरकत की थी।
इसके वावजूद फिर एक बार सड़क हादसा सामने आया जिसमें 15 व्यक्ति कालकवलित हुए और कई दर्जन घायल हो गये। यहां यह सवाल अहम है कि अपने सियासती मंसूबे पूरे करने के लिए राजनैतिक कार्यक्रम में लाये गये ग्रामीणों को सुरक्षित उनके घरों तक पहुँचाने की जिम्मेदारी क्या उन राजनैतिक दलों और नेताओं की नही है।
क्या यह आवश्यक नही है कि ऐसे कार्यक्रमों में जुटने वाले वाहनों की भीड़ से प्रभावित होने वाली यातायात व्यवस्था को लेकर सुरक्षा के समुचित प्रबंध किये जाने चाहिए। क्या यह आवश्यक नही है कि आयोजनो को लेकर जनता की सुरक्षा को लेकर एक स्पष्ट गाइडलाईन तैयार की जानी चाहिए।
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