सोशल मीडिया पर फैले झूठ और अंधी आस्था की भेंट चढ़े 5 नौजवान

युवा पीढ़ी को अंधकार की ओर धकेल रही धर्म से भटकाव की राह

5 youngsters fell prey to lies spread on social media and blind faith
5 youngsters fell prey to lies spread on social media and blind faith

(बुन्देली बाबू डेस्क) धार्मिक आस्थाओं के नाम पर आधे अधूरे ज्ञान और सोशल मीडिया का युवाओं में बढ़ता प्रचलन क्या उनके जीवन को नकारात्मकता और भटकाव की ओर तो नही ले जा रहा ? ये प्रश्न इसलिए अहम है कि उत्तरप्रदेश के 2 अलग स्थानों पर 5 बच्चों ने नाश्वर जगत से ईश्वर प्राप्ति का अंतिम संदेश जारी कर मौत को गले लगा लिया। आत्मघात के इस मामले के शिकार दो युवाओं ने तो अपने वाटसएप पर मौत के सत्य होने का स्टेट्स भी लगाया। ये बात सिर्फ चौकाने वाली नही बल्कि गहरी चिंता का विषय है, आखिर ये कौन से कारण है जिसके चलते देश की होनहार युवा पीढ़ी भटकाव के इस गहरे गर्त में की ओर जा रही है। ये धर्म का कौन सा पक्ष है जो हमे ज्ञान और यतार्थ के प्रकाश की जगह आडम्बर और घोर अंधविश्वास के निराशावादी अंधकार में धकेल रहा है।

ये चिंताजनक घटनाये उत्तरप्रदेश के धार्मिक शहर मथुरा एवं प्रथम स्वाधीनता संग्राम के केन्द्र रहे कालपी क्षेत्र से जुड़ी हुई है, जिनमें पहली घटना में बिहार के मुजफ्फरपुर के योगिया मठ इलाके से विगत 13 मई को गायब हुई 13 एवं 14 वर्ष आयु की 3 बच्चियों से संबंधित है जिन्होने 24 मई को मथुरा में ट्रेन से कटकर जान दे दी थी। जो अपने सुसाइड नोट में लिखकर गई कि बाबा उन्हे बुला रहे है वो हिमालय जा रही है। वही दूसरी घटना में कालपी के दो युवको ने अपने वाटसएप पर जलती हुए शवो के स्टेटस लगाये लिखा मौत के बाद का आनंद लीजिए और सल्फास खाकर आत्महत्या कर ली। इन झकझोर देने वाली दुखद घटनाओं के बाद समाज के माथे पर चिंता लकीरे होना जरूरी है, यह सभी के चिंतन का विषय होना चाहिए कि भटकाव की ओर जा रही युवा पीढ़ी की धरातल पर वापिसी कैसे हो।

जालौन के कालपी में दो युवको की आत्महत्या
जीवन में सकारात्मकता और आशाओं का संचार करने वाले संतो के उपदेश हमारे जीवन में सुधार लाते है परंतु इनकी गलत व्याख्या और विपरीत मार्ग अनुसरण हमें गहन अंधकार में धकेल सकता है। उत्तर प्रदेश के जालौन जिले में प्रसिद्ध दार्शनिक ओशो के स्टेटस् लगाने वाले दो युवको ने विगत मंगलवार रात्रि सल्फास गोली खाकर जान दे दी। मरने से पहले दोनो ने व्हाट्सएप पर स्टेटस लगाया कि मौत ही सत्य है। मृतक युवक स्वयं को दार्शनिक ओशो का फालोवर बताते थे। मामला कालपी कोतवाली थाना क्षेत्र से जुड़ा है जहा के निवासी अमन वर्मा 23 वर्ष एवं बालेन्द्र 21 वर्ष ने कर्बला मैदान में जहरीली गोली खाई थी हालत बिगड़ने पर उनके द्वारा परिजनों को सूचना दी गई परंतु उपचार के दौरान उनकी मौत हो गई।

The path of deviation from religion is pushing the young generation towards darkness

जानकारी के मुताबिक दोनो युवकों में गहरी मित्रता थी अमन विवाहित है परंतु बालेन्द्र की अब तक शादी नही हुई थी। घटना के बाद दोनो परिवारों में शोक है परिजनों का रो-रो कर बुरा हाल है। उनके अकारण आत्मघाती कदम से परिजन गहरे अवसाद में है।

मरने के पहले लगाये 3 स्टेट्स
हमेशा साथ में रहने वाले दोनो युवक दार्शनिक ओशो से प्रभावित थे और उनके प्रवचन सुनना पसंद करते थे। वह स्वयं को ओशो का फॉलोवर बताते थे और अक्सर उनकी बात किया करते थे। अमन ने सुसाइड करने से पहले 3 स्टेटस लगाए थे। पहले स्टेटस में लिखा- तुम अपने रास्ते, मैं अपने रास्ते। इस वीडियो में कुछ लोग एक लाश ले जाते दिख रहे हैं। वहीं दूसरे स्टेटस में लिखा- जीवन में ऐसा काम चुने, जो आपका आनंद हो, व्यवसाय नहीं। तीसरे स्टेटस में एक लाश जलती हुई का वीडियो लगाया। मामले में अभी तक स्पष्ट नही हो सका है कि उक्त स्टेटस उनके द्वारा किसके लिए लगाये गये थे एवं उनकी आत्महत्या का क्या कारण है। मामले में पुलिस द्वारा विवेचना की जा रही है।

बाबा की तलाश में घर से भागी बच्चियां ट्रेन के आगे कूदी
दूसरा मामला बिहार के मुजफ्फरपुर का जहाँ की निवासी माया गौरी एवं माही 13 एवं 14 वर्ष की किशोरिया आफस में मित्र थी जो कक्षा 8 एवं 10 में पढ़ती थी। वह सोशल मीडिया से आफस में संपर्क में आई और पक्की सहेलिया बन गई। वहं अक्सर भगवान और भक्ति के संबंधित पोस्टे शेयर करती रहती थी। विगत 13 मई को वह घर से मंदिर जाने का बताकर निकली थी बाद में परिजनों को उनका एक पत्र मिला जिसमें उनके द्वारा बाबा की तलाश में हिमालय जाने की बात कही गई थी। पत्र में लिखा था बाबा ने बुलाया है इसलिए वो बाबा की भक्ति के लिए हिमालय जा रही है 13 अगस्त को वापिस लौटेंगी।

3 teenage girls ran away from home in search of Bhole Baba
3 teenage girls ran away from home in search of Bhole Baba

यदि उन्हे तलाशने का प्रयास किया तो वह आत्महत्या कर लेंगी। यह पढ़कर परिजनों के हाथ पैर फूल गए वह उनकी तलाश करते रहे परंतु सफलता नही मिली। घटना के 11 दिन बाद 24 मई को उत्तरप्रदेश के मथुरा शहर में रेलवे ट्रेक पर एक दूसरे का हाथ थामे 3 बच्चियों ने ट्रेन के आगे कूदकर आत्महत्या कर ली। जिनकी शिनाख्त परिजनों द्वारा मुजफ्फरपुर से गायब किशोरियों के रूप में की गई है। इस संदेहास्पद मामले में पुलिस द्वारा बच्चियों के 11 दिनों तक गायब रहने सहित फोन की कॉल डिटेल से संपर्क में रहे नंबरों की जांच की जा रही है। मामले में जांच के लिए गठित एसआईटी भी कई प्रश्नों के जबाब तलाश रही है।

क्या खत्म होगी धर्म से भटकाव की राह
भारत प्राचीन काल से पूरी दुनिया में धर्म और अध्यात्म का केन्द्र रहा है, सम्प्रदाय के संकुचित दायरे से पृथक धर्म के विराट स्वरूप और संपूर्ण चर अचर जगत के प्रति मानवीय कर्तव्यों को का प्रतिपादन इसी धरा पर हुआ। भारतीय संतो और समाज सुधारकों के धार्मिक आग्रह में विश्व बंधुत्व और वासुदेव कुटुम्बम् की भावना इसी धरा से जन्मी और उनका विश्लेषण अलग अलग भाषाओं और धार्मिक स्वरूप में हुआ। उनके उपदेशों में निहित सकारात्मकता और मार्गदर्शन का ही परिणाम था कि भारतीय संतो ने दुनिया भर में सम्मान पाया। एक सघन आबादी के गरीब देश में शुमार रहा भारत धर्म एवं अध्यात्म के मामले में सदा से ही संपन्न रहा है। शायद यही कारण है कि दुनिया भर के अग्रणी देशों के जिज्ञासु और ज्ञान पिपासुओं के लिए यह भूमि सदा से ही अध्यात्मिक शांति का केन्द्र रही है। दुनिया भर में जब साकार और निराकर सहित धार्मिक प्रथाओं का टकराव चरम था तब भी यहाँ ये मान्यताऐं एकाकार रही और समान रूप से भारतीय समाज में स्वीकार्य बनी रही। यही कारण है कि इस देश में आज भी तुलसी, रहीम, कबीर और रविदास की घारा निरंतर प्रवाहित है।

परंतु ऐसा नही है कि भारतीय धर्म और समाज का प्रखर स्वरूप सदा से ही धवल होकर आलोकित होता रहा है, इसके स्याह कोने में धार्मिक कट्टरता, अंधविश्वास, नकारात्मकता और घोर निराशवाद भी जीवित बना रहा है। अतीत में प्रचलित सती प्रथा, मानव बलि, और सिद्धि प्राप्ति के लिए आत्मघात सहित कई ऐसे निषेध कर्मकाण्ड प्रचलित रहे है जिन्हे मानवीय ठहराया जाना शर्मनाक है। धार्मिक एवं जातिगत वैमस्यता भेदभाव, छुआछूत एवं वर्ग विभेद ने भी इसके मूल स्वरूप को कलंकित कर इसके विराट स्वरूप को प्रश्नचिन्हत किया है। सदियो तक चली आई जातिगत व्यवस्था से जुड़े शर्मनाक वाकये आज भी ग्रामीण क्षेत्रों एवं सभ्य समाज में होने वाली कुछ घटनाओं से जीवांत हो उठते है।

मौजूदा समय की बात कहे तो समाज धर्म के बेढंगे मार्ग पर चल रहा है, परंपरा और संस्कारों की मनमाफिक व्याख्याओं और सोशल मीडिया के आधे अधूरे ज्ञान ने इसे कुरूप बनाने का भरसक प्रयास किया है। राजनैतिक महत्वकांक्षाओं ने धर्म और सम्प्रदाय के बीच तो दूरिया बढ़ाई ही है साथ ही अगड़े पिछड़े के जातिगत विभेद को गहरा कर सामाजिक ताने बाने को तार तार कर दिया है। ऐसे विषय सोशल मीडिया पर सक्रिय समाज की युवा पीढ़ी के मानसिक धरातल के लिए उर्वरा का कार्य कर रहे है। जिसका परिणाम है कि धर्म के अधूरे ज्ञान ने पाखंड और चमत्कारों और कथित सिद्धियों को साध्य बना दिया है। गुमराह युवापीढ़ी अपनी मान्यताओं को लेकर मुखर कट्टर और उग्र हो रही है जिसके परिणाम में मॉब अटैक, टकराव, आत्मघात जैसी घटनायें सामने आ रही है। जिनके विषय में गंभीरता से विचार किया जाना आवश्यक है, धर्म और अध्यात्म के विराट स्वरूप को पुनः परिभाषित और स्थापित करना अहम है ताकि समाज में व्याप्त अज्ञान के अंधकार और निराशा को दूर किया जा सके।

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