Bundhelkhand- कुपित न हो झारखण्डन माता इसलिए हथखोह में नही होता होलिका दहन

सागर जिले में सूनी गोदे भरकर खुशिया देती है झारखण्डन माता

Jharkhandan Mata should not be angry, that's why Holika burning does not happen in Hathkhoh
Jharkhandan Mata should not be angry, that's why Holika burning does not happen in Hathkhoh

(बुंदेली बाबू डेस्क) भारत वर्ष और संपूर्ण दुनिया में रंग-उमंग, उल्लास और भाईचारे के पारंपरिक पर्व होली की शुरूआत होलिका दहन से होती है, परंतु बुंदेलखण्ड के सागर जिले के ग्राम हथखोह में कई दशकों से होलिका दहन नही किया जाता। होलिका दहन की रात्रि ग्राम में सन्नाटा पसरा रहता है। ग्रामीणों की मान्यता है कि कुपित न हो झारखण्डन माता इसलिए हथखोह ग्राम में कई दशकों से होलिका दहन आयोजन नही किया जाता।

देवरी विकासखण्ड के आदिवासी बहुल ग्राम हथखोह में आदिवासी समुदाय द्वारा पूर्व मान्यताओ को लेकर माँ झारखण्डन को प्रसन्न रखने के लिए ग्राम में होलिका दहन नही किया जाता है। सैकड़ो वर्षो से चली आ रही इस परंपरा को जीवित बनाये रखने के लिए ग्रामीणो द्वारा ग्राम में होली पर रंगो का पर्व तो मनाया जाता है परंतु माता के कुपित होने के भय से ग्राम में आज भी होली दहन नही किया जाता।

निःसंतान दंपतियो की गोदे हरी करने वाली माता के दरबार में नवरात्रि पर विशाल मेले का आयोजन होता है जिसमें हजारों श्रद्धाजु जमा होते है।

संसार में जगत जननी माता की महिमा का कोई सीमित दायरा नही है अपने पुत्रो के कष्टो को हरने के लिए माता संपूर्ण जगत में विभिन्न रूपो में विराजित होकर अपनी कृपा वर्षा रही है। देवरी विकासखण्ड में राष्ट्रीय राजमार्ग 26 से सटे हुए वन आच्छादित क्षेत्र में ग्राम हथखोह के समीप प्राचीन काल से झारखण्ड माता रमणीय सिद्ध धाम है।

जो कई दशको से वनवासी क्षेत्र के ग्रामीणों के लिए आस्था एवं विश्वास का केन्द्र है। माता आदिशक्ति के झारखण्ड देवी रूप का वर्णन देवी पुराण एवं घार्मिक ग्रंथो में नही मिलता परंतु लाखो लोगो के इस आराधना स्थल को लेकर ग्रामीणों में अनेक कथाये एवं किंदवंतिया प्रचलित है।

अग्नि से उत्पन्न हुई झारखण्डन माता

ग्रामीण माता झारखण्डन को उनके नाम के अनुरूप झार अर्थात प्रचण्ड अग्नि के खण्ड से उत्पन्न होना मानते है एपं उनके इसी स्वरूप की आराधना करते है। ग्रामीणों की मान्यता है कि अग्नि अंशीय माता झारखण्ड प्रचण्ड आग की लपटे देखकर कुपित होकर रोद्र रूप धारण कर लेती है जिससे ग्रामीण क्षेत्रो में अग्नि संकट की स्थितिया निर्मित होती है इसी कारण ग्रामीण माता के इस सिद्ध क्षेत्र के आसपास 3 किलोमीटर के दायरे में होलिका दहन नही करते।

हथखोह ग्राम के बुर्जुग 65 वर्षीय हिम्मत सिंह गौड़ बताते है कि झारखण्ड माता स्थानीय आदिवासी समुदाय की कुलदेवी है जिनकी आराधना उनके समुदाय द्वारा कई शतको से की जा रही है। पूर्व में माता ग्राम के समीप निर्जन वन में कौशम एवं इमली के पेड़ के नीचे स्थापित थी जिन्हे लगभग 30 वर्ष पूर्व ग्रामीणों द्वारा एक चबूतरे पर विराजित किया गया था जो आज एक धार्मिक एवं रमणीय स्थल के रूप में विकसित हो चुका है।

ग्रामीण बुर्जुग रामप्रसाद आदिवासी अग्नि स्वरूपा माता को लेकर पूर्व मान्यता का निर्वाहन करते हुए हथखोह ग्राम में होलिका दहन नही किया जाता है।

होलिका दहन से गांव में रहता है आपदा का खतरा

ग्रामीणों का मानाना है कि गांव में होलिका दहन देवीय आपदा को न्योता देना है, ग्रामीण बुर्जुगों के अनुसार कई दशक पूर्व एक बार ग्रामीणों द्वारा इस पंरपरा के विपरीत ग्राम में होलिका दहन किया गया था जिससे माता कुपित हो गई थी जिसके प्रभाव के चलते माता के प्राचीन स्थल पर इमली एवं कोशम के पेड़ झुलस गये थे एवं हथखोह ग्राम में अज्ञात कराणो से हुई आगजनी की घटना में लगभग आधा दर्जन घरों में आग लग गई थी जो काबू में नही आ रही थी।

जिसके बाद ग्रामीण माता की शरण में गये और क्षमा-याचना की प्रार्थना की जिसके तत्काल बाद प्रचण्ड अग्नि शांत हो गई। इसके बाद से मंदिर के 3 किलोमीटर के दायरे में होलिका दहन न करने की परंपरा की नींव पड़ी जो निरंतर चली हा रही है। हथखोह निवासी परषोत्तम सेन 58 वर्ष के अनुसार माता के इस सिद्ध क्षेत्र में दूर दराज से हजारो श्रद्धालु आकर अपनी मनौतिया मांगते है जिन्हे माता निराश नही करती।

सूनी गोदो को संतान प्राप्ति का सुख देती है माता

झारखण्डन माता का सिद्ध क्षेत्र पूर्व में निर्जन वन में था जहाँ आदिवासी समुदाय द्वारा ही माता की पूजा की जाती थी। धीरे धीरे माता की महिमा की ख्याति फैलने पर दूर दूर से निःसंतान दंपत्ति श्रद्धालु माता के दरबार में अपनी गुहार लेकर पहुँचने लगे। मंदिर के पंडा बलराम आदिवासी बताते है कि सकल मनोरथ पूर्ण करने वाली माता के इस धाम में अब तक हजारो निःसंतान दंपतियो की सूनी गोदे भर चुकी है।

वो बताते है कि माता के इस रूप को लेकर क्षेत्र में कई मान्यताये क्षेत्र में प्रचलित है। मंदिर की आसपास फैले निर्जन वन में माता बाल रूप एवं वृद्ध रूप में भ्रमण करती है। जिसके प्रमाण वनो में पत्थरो पर माता के चरण चिन्हो के रूप में कई स्थानो पर अंकित है।

नवरात्रि में लगता है विशाल मेला

देवरी विकासखण्ड के वन आच्छादित क्षेत्र में स्थित इस रमणीय धार्मिक क्षेत्र में यू तो सभी पर्वो पर श्रद्धालु की भीड़ जमा होती है परंतु नवरात्रि पर्व पर नवमी एवं दशमी के दिन आयोजित विशाल मेले में इस क्षेत्र में लगभग 50हजार से अधिक श्रद्धालु एकत्र होते है।

मेला दिवसो में इस सुरम्य क्षेत्र की आभा देखते ही बनती है ग्रामीण क्षेत्रो से आने वाले जवारो एवं भजन एवं नृत्य मंडलियो द्वारा पारंपरिक ग्रामीण संगीत द्वारा माता के दरबार में अपनी प्रस्तुतिया दी जाती है। बच्चो के मुंडन धार्मिक आयोजनो एवं पिकनिक आयोजन को लेकर मंदिर परिसर में श्रृद्धालुओ का तांता लगा रहता है।

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