(सागर) अपने भाई के स्वस्थ होने के इंतजार में कई वर्षो से पलके भिंगोने वाली 2 मासूम बहिनों के लिए यह रक्षाबंधन दुख और वेदना लेकर आया, जिस भाई को उन्हें रक्षासूत्र बांधकर लंबी उम्र की कामना करनी थी, उसे चिता पर राखी बांधकर मुखाग्नि देनी पड़ी। मामला सागर शहर के रविशंकर वार्ड का है जहा 2 मासूम बहिने अपने दिव्यांग भाई की मौत के बाद मुक्तिधाम तक पैदल चलकर पहुँची और चिता पर उसे राखी बांधकर फूट फूटकर रोई। यह दृश्य देखकर वहाँ उपस्थित हर व्यक्ति की आंख नम थी और मन वेदना से भर गया।
भाई और बहिनों के खट्टे मीठे प्यार और एक सूत के धागे में बंधे संसार के सबसे अनोखे रिश्ते के महापर्व रक्षाबंधन का इंतजार हर भारतवर्षी बहिन को रहता है। इस दिन अपने भाई की लंबी आयु की कामना करने वाली बहिनों की आंखे अपने भाई की एक झलक के लिए व्याकुल रहती है। बहिने पवित्र डोर अपने भाई की कलाई पर बांधती है और भाई उसकी उम्र भर रक्षा का संकल्प लेता है।
सागर के रविशंकर वार्ड में भाई के प्रति दो मासूम बहिनों के निश्छल प्रेम ने सभी को गमगीन कर दिया। प्रेम और समर्पण की प्रतिमूर्ति बनी ये बहिने अपने लंबे समय से अपने 17 वर्षीय दिव्यांग भाई की सेवा कर उसके स्वस्थ होने का इंतजार कर रही थी परंतु रक्षाबंधन के दो दिन पूर्व वह भाई अपनी बहिनों को बिलखता छोड़कर दुनिया से विदा हो गया। जिसके बाद वह रोती हुई अंतिम यात्रा के साथ मुक्तिधाम पहुँची और चिता पर भाई को राखी बांधकर मुखाग्नि दी।
दरअसल सागर के रविशंकर वार्ड निवासी पापू हल्ला ताम्रकार का 17 वर्षीय बेटा राजू ताम्रकार बहु दिव्यांगता के कारण बिस्तर पर रहता था। उसके जन्म से ही मानसिक रूप से कमजोर होने के कारण परिजन उसके स्वस्थ होने की कामना ईश्वर से करते थे। परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बाद भी पप्पू ताम्रकार ने उसका कई चिकित्सको से उपचार कराया परंतु कोई लाभ नही मिल सका।
पप्पू के परिजन खासतौर पर उसकी दोनों पुत्रिया माही और महक अपने भाई का पूरा ध्यान रखती थी। वह अपने भाई पर जान छिड़कती थी किसी भी अपनी छोटी छोटी खुशिया उन्हे भाई के साथ शेयर करना अच्छा लगता था। उन्हे उम्मीद थी कि एक दिन उनका भाई बिस्तर से उठकर उनके साथ बात करेगा और जीवन भर उनका संरक्षक बनकर साथ रहेगा। परंतु 16 वर्षीय माही 14 साल महक को यह अंदाजा नही था कि उनका प्राणों से प्यारा बड़ा भाई राजू उन्हे रक्षाबंधन से पहले ही छोड़कर हमेशा के लिए चला जायेगा।
अपने भाई की असामयिक मौत ने मासूमों के मन को दुख और वेदना से भर दिया वह रोते हुए पैदल चलकर मुक्तिधाम पहुँची और परंपरा के अनुरूप अपने भाई के हाथ में राखी बांधी और अंतिम विदाई दी। उन्होने पूरी रस्मो के साथ अंतिम संस्कार किया और मुखाग्नि दी। इस मार्मिक पल पर जो भी मुक्तिधाम में मौजूद था। वह दुखी नजर आया और भाई बहन के प्रेम का ये प्रसंग देख आंखें भर आई।
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