(बुन्देली बाबू डेस्क) भारत जोड़ो न्याय यात्रा पर निकले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अम्बेडकर वादी छात्र नेता रोहित वेमूला की मौत की 8 वी बरसी पर उसे याद किया और उसे वंचितों के संघर्ष का प्रतीक बताया। सोशल मीडिया प्लेटफार्म ट्वीटर एक्स पर अपनी मार्मिक पोस्ट के जरिए उन्होने रोहित वेमुला की मौत को अनेको आदर्शवादी युवाओं की आकांक्षाओ की हार निरूपित किया।
राहुल गांधी ने अपनी पोस्ट में लिखा कि एक प्रतिभाशाली और स्वप्नदर्शी छात्र रोहित वेमुला को दुनिया छोड़े हुए आज 8 साल हो गए। जाते जाते रोहित वंचितों के संघर्षों का प्रतीक, अनगिनत लोगों की प्रेरणा बन गया। उसकी कहानी ने समाज का एक कड़वा सच फिर उजागर किया कि जीवन सबके लिए एक जैसा नहीं है।
मुझे संतोष है कि आज हम उस व्यवस्था से लड़ रहे हैं, जिसने रोहित जैसे अनेकों आदर्शवादी युवाओं की आकांक्षाओं को हराया है। मैं उम्मीद करता हूं कि हमारा संघर्ष एक ऐसी न्यायपूर्ण व्यवस्था को जन्म देगा जहां कोई और रोहित वेमुला हारेगा नहीं, बल्कि उसके सपनों को नई उड़ान मिलेगी, बराबरी का हक़ मिलेगा। ऐसी ही व्यवस्था सही मायने में रोहित को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
जो धर्म को शर्ट की तरह पहनते है वो धर्म से फायदा उठाने की कोशिश करते है
कौन थे रोहित वेमुला
रोहित चक्रवर्ती वेमुला हैदराबाद सेंट्रल युनिवर्सिटी के पीएचडी के छात्र थे जो युनिवर्सिटी में आंबेडकर स्टूडेंट्स असोसिएशन के सदस्य थे. छात्रो के हितो एवं भेदभाव के विरूद्ध संघर्ष करने वाले इस 26 वर्षीय छात्र नेता ने
17 जनवरी 2016 को युनिवर्सिटी के होस्टल के एक कमरे में फांसी लगाकर अपनी जान दे दी थी. उनकी मौत के बाद पूरे देश में छात्र राजनीति में उबाल आ गया और सामाजिक असमानता एवं भेदभाव के विरूद्ध लाखों छात्र उठ खड़े हुए। यह पहला अवसर था जब देश के छोटे बड़े सभी कस्बों में एक छात्र नेता को श्रद्धाजंली देकर घटना पर क्षोभ व्यक्त किया गया। और दिवंगत छात्र नेता रोहित वेमुला देश में छात्रों के संघर्ष और सामाजिक असमानता के विरूद्ध लड़ाई का प्रतीक बन गये। उनकी आत्महत्या का मामला लंबे वक्त तक सुर्खियों में रहा और आज भी इस बारे में बात होती है.
चर्चाओं में रहा रोहित वेमूला का आखिरी खत
रोहित वेमुला की मौत के बाद सामने आया उनका आखिरी खत मार्मिक और सामाजिक विषमता के दर्शन से भरा हुआ था। इस खत में उन्होने लिखा की मेरा जन्म एक दुखद हादसा था। प्रसिद्ध मीडिया संस्थान बीबीसी हिन्दी द्वारा उनके पत्र का हिन्दु अनुवाद कर प्रकाशित किया गया जो इस प्रकार था-
गुड मॉर्निंग,
आप जब ये पत्र पढ़ रहे होंगे तब मैं नहीं होऊंगा. मुझ पर नाराज़ मत होना. मैं जानता हूं कि आप में से कई लोगों को मेरी परवाह थी, आप लोग मुझसे प्यार करते थे और आपने मेरा बहुत ख्याल भी रखा.
मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है. मुझे हमेशा से ख़ुद से ही समस्या रही है. मैं अपनी आत्मा और अपनी देह के बीच की खाई को बढ़ता हुआ महसूस करता रहा हूं. मैं एक दानव बन गया हूं. मैं हमेशा एक लेखक बनना चाहता था. विज्ञान पर लिखने वाला, कार्ल सगान की तरह. लेकिन अंत में मैं सिर्फ़ ये पत्र लिख पा रहा हूं.
मुझे विज्ञान से प्यार था, सितारों से प्यार था, प्रकृति से प्यार था… लेकिन मैंने लोगों से प्यार किया और ये नहीं जान पाया कि वो कब के प्रकृति को तलाक़ दे चुके हैं. हमारी भावनाएं दोयम दर्जे की हो गई हैं. हमारा प्रेम बनावटी है. हमारी मान्यताएं झूठी हैं. हमारी मौलिकता वैध है बस कृत्रिम कला के ज़रिए. यह बेहद कठिन हो गया है कि हम प्रेम करें और दुखी न हों. एक आदमी की क़ीमत उसकी तात्कालिक पहचान और नज़दीकी संभावना तक सीमित कर दी गई है. एक वोट तक.
आदमी एक आंकड़ा बन कर रह गया है. एक वस्तु मात्र. कभी भी एक आदमी को उसके दिमाग़ से नहीं आंका गया. एक ऐसी चीज़ जो स्टारडस्ट से बनी थी. हर क्षेत्र में, अध्ययन में, गलियों में, राजनीति में, मरने में और जीने में. मैं पहली बार इस तरह का पत्र लिख रहा हूं. पहली बार मैं आख़िरी पत्र लिख रहा हूं. मुझे माफ़ करना अगर इसका कोई मतलब न निकले तो. हो सकता है कि मैं ग़लत हूं अब तक दुनिया को समझने में. प्रेम, दर्द, जीवन और मृत्यु को समझने में. ऐसी कोई हड़बड़ी भी नहीं थी. लेकिन मैं हमेशा जल्दी में था. बेचौन था एक जीवन शुरू करने के लिए.
इस पूरे समय में मेरे जैसे लोगों के लिए जीवन अभिशाप ही रहा. मेरा जन्म एक भयंकर हादसा था. मैं अपने बचपन के अकेलेपन से कभी उबर नहीं पाया. बचपन में मुझे किसी का प्यार नहीं मिला. इस क्षण मैं आहत नहीं हूं. मैं दुखी नहीं हूं. मैं बस ख़ाली हूं. मुझे अपनी भी चिंता नहीं है. ये दयनीय है और यही कारण है कि मैं ऐसा कर रहा हूं. लोग मुझे कायर क़रार देंगे. स्वार्थी भी, मूर्ख भी. जब मैं चला जाऊंगा. मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता लोग मुझे क्या कहेंगे.
मैं मरने के बाद की कहानियों भूत प्रेत में यक़ीन नहीं करता. अगर किसी चीज़ पर मेरा यक़ीन है तो वो ये कि मैं सितारों तक यात्रा कर पाऊंगा और जान पाऊंगा कि दूसरी दुनिया कैसी है. आप जो मेरा पत्र पढ़ रहे हैं, अगर कुछ कर सकते हैं तो मुझे अपनी सात महीने की फ़ेलोशिप मिलनी बाक़ी है. एक लाख 75 हज़ार रुपए. कृपया ये सुनिश्चित कर दें कि ये पैसा मेरे परिवार को मिल जाए. मुझे रामजी को 40 हज़ार रुपए देने थे. उन्होंने कभी पैसे वापस नहीं मांगे. लेकिन प्लीज़ फ़ेलोशिप के पैसे से रामजी को पैसे दे दें. मैं चाहूंगा कि मेरी शवयात्रा शांति से और चुपचाप हो. लोग ऐसा व्यवहार करें कि मैं आया था और चला गया. मेरे लिए आंसू न बहाए जाएं. आप जान जाएं कि मैं मर कर ख़ुश हूं जीने से अधिक.
‘छाया से सितारों तक’
उमा अन्ना, ये काम आपके कमरे में करने के लिए माफ़ी चाहता हूं.
आंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन परिवार, आप सब को निराश करने के लिए माफ़ी. आप सबने मुझे बहुत प्यार किया. सबको भविष्य के लिए शुभकामना.
आखिरी बार
जय भीम
मैं औपचारिकताएं लिखना भूल गया. ख़ुद को मारने के मेरे इस कृत्य के लिए कोई ज़िम्मेदार नहीं है. किसी ने मुझे ऐसा करने के लिए भड़काया नहीं, न तो अपने कृत्य से और न ही अपने शब्दों से. ये मेरा फ़ैसला है और मैं इसके लिए ज़िम्मेदार हूं. मेरे जाने के बाद मेरे दोस्तों और दुश्मनों को परेशान न किया जाए.
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