हाथो में नही थी किस्मत की लकीरे तो पैरों से लिख दी अपनी तकदीर

Amin Mansoori of Dewas became an example for the disabled by passing the Patwari exam

The lines of luck were not in the hands, so I wrote my fate with my feet.
The lines of luck were not in the hands, so I wrote my fate with my feet.

(बुन्देली बाबू डेस्क) कहते है इंसान के हाथों की लकीरों में उसकी किस्मत छुपी होती है, पर सोचिए जिस शख्स के जन्म से ही हाथ ना हो उसकी किस्मत कैसे और कहां लिखी जाएगी ? यहाँ हम बात कर रहे है मध्यप्रदेश के देवास जिले के पीपलरवां गांव के दिव्यांग आमीन मंसूरी की जिनके जन्मकाल से ही दोनो हाथ नही थे और उन्होने पैरों से अपनी किस्मत लिखकर पटवारी की परीक्षा पास की है।

मध्यप्रदेश के देवास जिले की पीपलरवां नगर परिषद के निवासी आमीन मंसूरी ने अपने पहले प्रयास में ही पटवारी की परीक्षा पास करके सभी को चौका दिया, दर असल अमीन के जन्म से ही दोनो हाथ नही है उन्होने पटवारी परीक्षा में पैरों से पर्चा लिखा और अपने वर्ग में देवास जिले मे प्रथम स्थान भी प्राप्त किया।

उनकी इस सफलता से उनके परिवार में उत्साह है, उन्हे जानने वाले और उनके संघर्ष में उनके सहयोगी बने तमाम लोग उनकी इस सफलता से प्रफुल्लित है।

आमीन का जीवन अपने आप में संघर्षो की एक महागाथा है, उन्होने जब जन्म लिया तो उनके हाथ नही थे, परंतु न तो उनके परिजनों ने हार मानी न ही आमीन ने कभी इसे अपनी कमजोरी बनने दिया।

उन्होने अपने सारे काम पैरों के सहारे करना आरंभ किया और स्कूल में दाखिला भी लिया। उनके पिता इकबाल मंसूरी बताते है कि आमीन ने बचपन में ही पैरों से लिखना सीख लिया था। उनकी पढ़ाई के प्रति लगन और जज्बा देखकर गांव के राष्ट्रीय विद्या मंदिर विद्यालय ने उन्हे एलकेजी से 8 तक निःशुल्क शिक्षा व्यवस्था उपलब्ध कराई.

इसके बाद उन्होने 10 से 12 तक सरकारी स्कूल में पढ़ाई की और इंदौर गये और वैंकटेश्वर में 3 वर्ष ग्रेज्युसन पूरा किया। साल दर साल वह उत्तीर्ण होकर नई कक्षा में प्रवेश कर सभी को विस्मत करते रहे है और अपने माता पिता की उम्मीदों और खुशियों का केन्द्र भी बने रहे।

उन्होने अपने बेजोड़ हौसलों के दम पर पैर से कम्प्यूटर चलाना भी सीखा और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी की।वह थक हारकर कभी शांत नही बैठे जिंदगी में कुछ कर गुजरने के जज्बे के साथ उन्होने पटवारी परीक्षा में भाग लिया और परीक्षा हाल में पर्चा पैरों से हल किया।

अब जब रिजल्ट आया तो उन्होने अपनी केटेगिरी में जिले में प्रथम स्थान प्राप्त कर एक बार सभी को हैरत में डाल दिया है। जिंदगी के प्रति उनकी सकारात्मक सोच और कुछ कर गुजरने का ख्वाहिश उन्हे एक बेमिसाल इंसान बनाती है।

उनकी इस सफलता के बाद उनके घर में जश्न का माहौल है अपने बेटे की सफलता से उनके पिता इकबाल मंसूरी का सीना गर्व से चौड़ा हो गया है। वह इसे अपने बेटे की लगन और परिश्रम का परिणाम मानते है, उन्हे अपने बेटे पर गर्व है कि उसने उनके परिवार और पीपलरवां गांव का नाम रोशन कर दिया। प्रदेश के दिव्यांगों के लिए मिसाल बन चुके अमीन का संघर्ष सचमुच निराला है।

इसके पहले सूरज तिवारी ने गाड़े थे सफलता के झंडे

पंखों से नही अपने हौसलों से जिंदगी की ऊँची उड़ान भरने वाले आमीन से पूर्व उत्तरप्रदेश के दिव्यांग सूरज तिवारी सिविल सेवा परीक्षा में 917 वी रैंक हासिल कर सभी को चौका दिया था। दरअसल वर्ष 2017 में गाजियाबाद के पास चरखी दादरी में एक ट्रेन दुर्घटना में सूरज ने दोनो पैर और एक गवां दिया था।

जिसके उनकी जिंदगी मुश्किल और चुनौती पूर्ण हो गई थी। परंतु उन्होने हार नही मानी और वर्ष 2021 में बीए की परीक्षा पास की और फिर वर्ष 2023 में यूपीएससी परीक्षा में अपना परचम लहराकर युवाओं के लिए एक मिसाल बने।

इसीलिए तो अक्सर लोग गुनगुनाते है –

मंजिले उन्ही को मिलती है जिनके इरादों में जान होती है।
पंख से कुछ नही होता हौसलों में उड़ान होती है।।

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