(बुन्देली बाबू) दुनिया में मानव समाज के लिए सबसे कठिन चुनौती के रूप में आये कोविड वायरस ने लाखों जिंदगिया छीन ली। लगभग 2 वर्षो के इस बुरे समय को कोविड काल के रूप में जाना जाता है। इस लइलाज बीमारी से मानव समाज को बचाने के लिए शुरू हुई टीकाकरण की मुहिम अब सवालों के दायरे में है। क्या उस कठिन दौर में पूरे भारत और दुनिया भर में शुरू हुआ वैक्सीनेशन जल्दबाजी थी ? क्या टीकाकरण के पहले इसके पोस्ट दुष्प्रभावों को नजरअंदाज किया गया था ?
कोविड वैक्सीनेशन की बात यदि भारत के संदर्भ में की जाये तो उस चुनौती से भरे समय में देश की मोदी सरकार द्वारा पूरे देश में टीकाकरण अभियान के रूप में आरंभ कराया गया था। देश में कोवीशील्ड एवं कोवैक्सिन के अतिरिक्त स्पूतनिक वैक्सीन के टीके सरकारी एवं निजी खर्च पर लगाये गये थे। सरकारी वैक्सीनेशन में कोवीशील्ड एवं कोवैक्सीन को प्राथमिकता दी गई थी जिसके चलते देश में 100 करोड़ से अधिक व्यक्तियों को टीके लगाये जाने का दावा भी किया गया था। जिसमें एस्ट्राजेनेका कंपनी की कोवशील्ड वैक्सीन का निर्माण सीरम इंडिया इंस्टीटयूट लिमिटेड कंपनी द्वारा किया गया था।
कई बार उठ चुकी है वैक्सीन के दुष्प्रभावों की बात
कोविड वैक्सीनेशन के बाद देश में हुई अचानक मौतों को लेकर कई बार इसके दुष्प्रभावों की बात उठाई जा चुकी है। देश में अलग अलग स्थानों पर हुई हृदयघात की मौतों को लेकर सोशल मीडिया प्लेटफार्मो पर यह बात उठाई जाती रही है। देश के कई चिकित्सकों द्वारा भी कोविड वैक्सीन के दुष्प्रभावों को लेकर संदेह व्यक्त किये गये थे। कुछ चिकित्सा विशेषज्ञों द्वारा मामले में सरकार से वेक्सीन के दुष्प्रभावों को लेकर जांच कराये जाने की मांग भी की गई थी परंतु उक्त शिकायतों और आशंकाओं पर कोई कार्रवाई नजर नही आई। दरअसल देश के कई इलाकों में हृदयघात से हुई मौतों ने लोगों का ध्यान इन आशंकाओं की ओर आकर्षित किया था।
बाद में बड़ी संख्या में कोविड का शिकार बने लोगों में शुगर स्तर बढ़ने, ब्रेन हेमरेज, जोड़ों का दर्द, बाल झड़ने, सांस फूलने एवं लकवा की शिकायतें भी दर्ज हुई जिन्हें कोविड के पोस्ट इफेक्ट या वैक्सीनेशन से जोड़कर भी बताया गया है। ऐसी आशंकाओं के बीच अब कंपनी द्वारा ब्रिटेन की एक अदालत में वैक्सीन के दुप्रभावों को स्वीकारे जाने के बाद इस पर नई बहस आरंभ हो गई है।
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लोकप्रियता के चलते विश्व भर में रही कोवीशील्ड की मांग
विश्व में सबसे अधिक प्रसिद्धि पाने वाली कोविड वैक्सीन कोवीशील्ड की विश्वसनीयता को लेकर बड़े बड़े दावे किए गये थ। ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री बोरिस जानसन ने इस वेक्सीन को लांच कर इसे विश्व में अपने देश के विज्ञान की उपलब्धि के रूप में बताया था। कोवीशील्ड की लोकप्रियता के चलते कई देशों में वैक्सीन को कोविड वायरस का प्रभावी कवच मानकर इसे प्राथमिकता दी गई और दुनिया भर के कई देशों में इसका बड़े पैमाने पर उत्पादन भी किया गया। भारत में इस वैक्सीन का निर्माण गुजरात के निवासी अदार पूनावाला की कंपनी सीरम इ्रंडिया इंस्टीट्यूट लिमिटेड द्वारा किया गया। भारत सरकार द्वारा कंपनी से कान्ट्रेक्ट किये जाने के बाद इस कंपनी में करोड़ो वैक्सीन का उत्पादन किया।
ब्रिटेन की अदालत में कंपनी ने दुष्प्रभावों को स्वीकारा
कोवीशील्ड की निर्माता कंपनी उस समय आरोपों से घिर गई जब वैैक्सीनेशन के बाद नार्वे में हुई मौतों के बाद इसके लिए वैक्सीन को दोषी ठहराया गया था। उस दौरान आरोप लगाया गया था कि वैक्सीन के बाद 20 दिन के अंदर एक साथ कई लोगों के शरी में खून के थक्के जमने की शिकायत पाई गई और कई लोगों की मौत हो गई थी। बाद में ऐसे ही मामले ब्रिटेन में दर्ज किये गये और 50 से अधिक मामले कोर्ट में पहुँचने के बाद कंपनी द्वारा वैक्सीन के दुर्लभ पोस्ट इफेक्ट को स्वीकार किया गया।
कोविड वैक्सीन निर्माता कंपनी एस्ट्राजेनेका ने स्वीकार किया है कि दुर्लभ मामलों में कुछ लोगों में टीके के दुष्प्रभाव हो सकते हैं, जिससे थ्रोम्बोसिस विद थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम (टीटीएस) होने का जोखिम बढ़ जाता है। कंपनी द्वारा स्वीकार किए जाने के बाद पूरी दुनिया में लोगों के मन में वैक्सीनेशन को लेकर कई प्रकार के खौफ देखे जा रहे है। लोगो की चिंता है कि वैक्सीन उनमें हार्ट अटैक, ब्रेन स्ट्रोक का जोखिम तो नहीं बढ़ा देगी। ब्रिटेन की फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका ने माना है कि उनकी कोविड वैक्सीन से खतरनाक साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं। हालांकि ऐसा बहुत रेयर (दुर्लभ) मामलों में ही होगा।एस्ट्राजेनेका का जो फॉर्मूला था उसी से भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ने कोवीशील्ड नाम से वैक्सीन बनाई है।
ब्रिटिश मीडिया टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, एस्ट्राजेनेका पर आरोप है कि उनकी वैक्सीन से कई लोगों की मौत हो गई। वहीं कई अन्य को गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ा। कंपनी के खिलाफ हाईकोर्ट में 51 केस चल रहे हैं। पीड़ितों ने एस्ट्राजेनेका से करीब 1 हजार करोड़ का हर्जाना मांगा है।
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सबसे पहले ब्रिटिश नागरिक जेमी स्कॉट ने केस किया
अप्रैल 2021 में जेमी स्कॉट नाम के शख्स ने यह वैक्सीन लगवाई थी। इसके बाद उनकी हालत खराब हो गई। शरीर में खून के थक्के बनने का सीधा असर उनके दिमाग पर पड़ा। इसके अलावा स्कॉट के ब्रेन में इंटर्नल ब्लीडिंग भी हुई। रिपोर्ट के मुताबिक, डॉक्टरों ने उनकी पत्नी से कहा था कि वो स्कॉट को नहीं बचा पाएंगे।
क्या है थ्रोम्बोसिस एंड थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम
थ्रोम्बोसिस एंड थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम को कोविड-19 टीकों से जुड़ी एक दुर्लभ जटिलता माना जा रहा है। डॉक्टर ष्थ्रोम्बोसिसष् शब्द का उपयोग रक्त का थक्का बनने की समस्या के रूप में करते हैं, ये रक्त वाहिकाओं को अवरुद्ध कर सकता है। कभी-कभी यह शरीर के कुछ हिस्सों में रक्त के प्रवाह को बाधित भी कर सकता है। थ्रोम्बोसाइटोपेनिया तब होता है जब किसी व्यक्ति में प्लेटलेट काउंट कम हो जाता है। प्लेटलेट्स रक्त के महत्वपूर्ण घटक होते हैं जो प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया में मदद करते हैं।
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