(बुन्देली बाबू) भारत में निर्वाचन लोकतंत्र का महापर्व कहा जाता है इसी आधार पर इसकी और अधिक व्याख्या की जाए तो यह लोकतंत्र की दीपावली है जिसमें हम सिस्टम की सफाई करते है व्यवस्था को संवार कर खूबसूरत बनाने का जतन करते है। घोषणाओं की फुलझड़ी और आरोपों के बम भी इसे रंगीन और संगीन बनाने की कसर नही छोड़ते। एक ऐसा महापर्व जो हमें पुरानी मान्यताओं से जोड़ता है और उन्हे तोड़ता भी है, परंतु जब मर्यादाये टूटने लगे तो आतिशबाजी के रंग भी बेरंग दिखने लगते है। ऐसे में नोट का जबाब नोटा का नारा मतदाताओं को अवैकल्पिक राह की और ढकेलने लगता है और बचाव सिर्फ अतीत को कुरेदने के भरसक प्रयास में लगा रहता है।
अब हमारे मध्यप्रदेश की बात करे तो देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर में लोकतंत्र के महापर्व की तैयारी पूरी हो चुकी है कल 13 मई को इंदौरवासी 25.13 लाख मतदाता अगले 5 वर्षो के लिए अपने प्रतिनिधि का निर्वाचन करेंगे। इंदौर की देश में अपनी अलग पहचान है कभी दो राज्यों का व्यपारिक केन्द्र रहे इंदौर आज भी अपने आदर्शवाद विकासवादी सोच और नैतिक नजरिये के लिए पहचाना जाता है। इंदौर में लोकसभा चुनाव की सरगर्मिया चरम पर है। पर इस बार यह चुनाव कई मायनों में अलग है कहने को तो इस सीट पर 13 प्रत्याशी मैदान में है परंतु नाम निर्देशन फार्म वापिसी के दिन सामने आई राजनैतिक नौटंकी ने सभी को हतप्रभ कर दिया था। दर असल इस घटनाक्रम में प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के घोषित उम्मीदवार अक्षय कांति बम ने ऐन मौके पर अपना नाम निर्देशन फार्म वापिस ले लिया और सत्तारूढ़ भाजपा का दामन थाम लिया।
महारानी अहिल्याबाई होल्कर के शहर में यह पहला अवसर था जब लोगों ने मताअधिकार और लोकतांत्रिक मर्यादाओं के अनावश्यक उपहास की बेशर्म चेष्टा देखी। जिसकी न तो जरूरत थी और न ही यह निर्वाचन के संभावित परिणामों को बदलने की कोशिश कही जा सकती है। इस बेशर्म वाकये को लेकर भाजपा में ही असहमति के बादल मंडरा रहे पार्टी संगठन के नेता एवं वरिष्ठ नेता भी इस घटनाक्रम को पार्टी के एक गुट विशेष के सिर पर थोपकर नाराजगी जाहिर कर रहे है। घटनाक्रम ये उपजी नाराजगी के चलते मतदाता इसे उनके लोकतांत्रिक अधिकार में हस्तक्षेप को लेकर कई तरह के सवाल सवाल उठा रहे है। वही इस मामले को तूल देने की कोशिश कर रहा विपक्ष मतदाताओं की नाराजगी को नोटा में बदलने की तैयारी में जुटा है।
कांग्रेस का नारा ‘‘नोट का जबाब नोटा’’
चुनावी रण से कांग्रेस प्रत्याशी के हटने के बाद से इंदौर लोकसभा सीट पूरे देश में चर्चाओं का केन्द्र है, प्रदेश के मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस द्वारा इसी इलाके से आने वाले जीतू पटवारी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है। मौजूदा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के चुनाव मैदान से भागकर भाजपा में शामिल होने के बाद से चुनावी माहौल में गर्मी आ गई है। प्रदेश कांग्रेस इसे अपनी प्रतिष्ठा से जोड़कर देख रही है तो पूरे घटनाक्रम पर मतदाताओं और अपनो की नाराजगी से घिरी भाजपा बचाव की मुद्रा में है। कांग्रेस ने चुनाव लड़ रहे मौजूदा प्रत्याशी से पृथक नोटा पर भरोसा जताकर उसे उम्मीदवार घोषित कर दिया है।
कांग्रेस अपने बेनर पोस्टर और प्रचार माध्यमों में लोगो से नोटा का बटन दबाने की अपील कर रही है। कांग्रेस का आरोप है कि पैसे के लेनदेन और दबाब के कारण उनका प्रत्याशी चुनाव मैदान से हट गया है। इसलिए कांग्रेस द्वारा ‘‘नोट का जबाब नोटा’’ का नारा बुलंद किया जा रहा है। नोटा के प्रचार में जुटी कांग्रेस द्वारा इसको लेकर नुक्कड़ सभाये, जनसंपर्क और सेल्फी प्लाइंट भी बनाये गये है। महिला कांग्रेस सहित कांग्रेस संगठन और कई स्वयंसेवी संस्थाये और बुद्धिजीवी भी नोटा की वकालत कर रहे है। उनका मानना है कि भाजपा ने तानाशाही रवैया अपनाकर लोगो को वोट के संवैधानिक अधिकार से वंचित करने का प्रयास किया है।
इंदौर कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय बम चुनाव मैदान से भागे, भाजपा में शामिल
भाजपा का पलटवार ‘‘तुम्हारा सिक्का खोटा’’
इंदौर में हुई राजनैतिक उठापटक के बाद चारो और से आलोचना झेल रही भाजपा विपक्ष को जमकर निशाना बनाकर जनमानस को बदलने की भरपूर कोशिश कर रही है। कांग्रेस के नारे के जबाब में भाजपा ने ‘‘तुम्हारा सिक्का खोटा, हम क्यो दबाये नोटा’’ के माध्यम से भाजपा उम्मीदवार को वोट देने की अपील की है।
अगर इंदौर के मिजाज की बात करे तो तो इस लोकसभा पर भाजपा का 35 वर्षो से कब्जा है पूर्व लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन इस पर 25 वर्षो तक सांसद रही और पिछले 2 चुनावों से भाजपा के शंकर लालवानी इस सीट पर काबिज है जिन्हें पार्टी ने एक बार फिर चुनावी मैदान में उतारा है। विगत चुनाव में देश की सबसे बड़ी जीत दर्ज करने वाले लालवानी के सामने अब नोटा की चुनौती है जो जीत के लिए कठिन तो नही परंतु जीत का इतिहास दोहराने में बड़ा रोढ़ा साबित होगी। ऐसे में जीत के घटते अंतर की संभावना को लेकर भाजपा में खलबली है, क्योकि उनकी कम मार्जिन से जीत उसके दबदबे और लोकप्रियता को चोट पहुँचाएगी।
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भाजपा की गले की फांस बनी सबसे बड़ी जीत की प्रतिस्पर्धा
मध्यप्रदेश के इंदौर में भाजपा की राजनैतिक सर्जिकल स्ट्राइक उसके ही गले की फांस बन गई है, ऐन चुनाव के समय अपने सबसे मजबूत गढ़ में अति उत्साह में लिये गये इस फैसले ने उसे आलोचना का शिकार बना दिया है। अधिकांश लोग अब राजनैतिक उठापटक से अवाक है और इसके कारणों को जानने का प्रयास कर रहे है। कुछ लोग इसे अपरिपक्व फैसला बता रहे है तो कुछ लोग इसे प्रदेश के राजनैतिक छत्रपों की नंबर बढ़ाने की प्रतिस्पर्धा के रूप में देख रहे है। दरअसल विधानसभा चुनाव में पार्टी की ऐतिहासिक जीत के बाद मुख्यमंत्री पद पर डॉ. मोहन यादव की ताजपोशी से प्रदेश के स्थापित नेता खिन्न है।
उन्हे पूरी उम्मीद है कि विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश सरकार में फेरबदल होगा। इसी विश्वास ने प्रदेश में पार्टी के प्रमुख चेहरों में एक अनोखी प्रतिस्पर्धा को जन्म दिया है और वह पार्टी संगठन को अपना दमखम दिखाने के लिए सबसे बड़ी जीत हासिल करने की होड़ में जुटे हुए है। जानकारों का मानना है कि इसी प्रतिस्पर्धा के चलते पार्टी के एक गुट द्वारा सूरत की तर्ज पर इंदौर में क्लीन स्वीप की बिसात बिछाई गई थी जो पूरी नही हो सकी और पार्टी के लिए नया सरदर्द बन गई है। ऐसे में न्याय और नवाचार के लिए पहचाने जाने वाले इंदौर शहर ने यदि इसे अपनी प्रतिष्ठा मान लिया जो पार्टी की किरकिरी हो सकती है।
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